

विद्यालय के प्रबंधक और प्रधानाचार्य के मिली भगत से शिक्षको ने सरकार को लगाया लाखो-लाख रुपये का चूना
मूलउपस्थिति पंजिका पर नही है शिक्षको का हस्ताक्षर
कुशीनगर नो वर्क, नो पे ” कार्य नही तो वेतन नही। के आदेश के बावजूद जुलाई 2012 से मार्च 2014 तक बिना कार्य किये तथ्य गोपन कर कुछ शिक्षको द्वारा लाखो-लाख रुपये एरियर के रूप मे भुगतान प्राप्त कर सरकारी खजाने से गोलमाल किये जाने का मामला प्रकाश में आया है। सूत्र बताते है कि इन शिक्षको का विद्यालय के मूल उपस्थिति रजिस्टर पर कही भी हस्ताक्षर नही है। विद्यालय के प्रबंधक व प्रधानाचार्य के अख्या के बाद तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक उदय नरायण मिश्र ने निदेशालय को अपनी रिपोर्ट भेजी थी। इसके बाद इन शिक्षको ने तथ्य गोपन और तीन-पांच कर लाखो रुपये एरियर लेकर सरकार का चूना लगाया है जिसकी सत्यता विद्यालय की मूल उपस्थित पंजिका की जांच करने के बाद स्पष्ट हो जायेगा। ऐसा विभागीय सूत्रो का दावा है। यह सनसनीखेज मामला जनपद के कप्तानगंज स्थित एक इण्टर कालेज का है।
काबिलेगौर है कि वर्ष 1999 में तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक कुशीनगर ने जनपद मे बिना पद के शिक्षक/शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के नियुक्ति की शिकायत प्राप्त होने पर वेतन भुगतान अवरुद्ध कर दिया था । इससे क्षुब्ध होकर कप्तानगंज इंटर कॉलेज के शिक्षको द्वारा उच्च न्यायालय मे विभिन्न याचिकाए योजित की गयी जो कालांतर मे एक याचिका 39088/2007 के साथ सम्बद्ध होकर आदेश पारित हुआ। आदेश में कहा गया कि जो शासनादेश के अन्तर्गत आने वाले शिक्षक नियमित रूप से कार्य कर रहे है उनसे कार्य कराते हुए शानादेश में शामिल शिक्षकों को बकाया वेतन का भुगतान इस सत्यापन के अधीन किया जाएगा कि वह विद्यालय में नियमित अध्यापन कर रहे हैं। ऐसा सत्यापन के बाद उन्हें वेतन भुगतान के लिए लागू नियमों के अनुसार अपना वेतन प्राप्त करने की अनुमति दी जाती है।
बिना कार्य किये भुगतान लेने का शुरू हुआ खेल
जानकार बताते है कि न्यायालय के आदेश के बाद जुलाई – 2012 से मार्च 2014 तक वह शिक्षक भी वेतन भुगतान की मांग करने लगे जिनका इस समयान्तराल विद्यालय से न कोई सरोकार था और न ही विद्यालय मे इन लोगो द्वारा पठन-पाठन का कार्य संपादित किया गया।
सरकारी खजाने से लाखो रुपये हथियाने के लिए बनाया अपना रजिस्टर
सूत्र बताते है कि तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा बेतन भुगतान पर रोक लगाने के बाद जब शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारी न्यायालय के शरण मे चले गये तो अधिकाशं शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों ने नियमित विद्यालय जाने से खुद को रोक लिया। मतलब यह कि विद्यालय के जिम्मेदारियो से यह शिक्षक अलग-थलग हो गये। नतीजतन विद्यालय के मूल उपस्थिति पंजिका पर यह शिक्षक हस्ताक्षर करने से वंचित हो गये। बताया जाता है कि जब न्यायालय ने इन शिक्षको को नियमित रूप अध्यापन कार्य करने के आधार पर आगे भी कार्य करने व उपस्थिति के सत्यापन के बाद भुगतान करने का आदेश दिया तो विद्यालय के उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर न होने के कारण यह सभी शिक्षको ने अपना एक उपस्थिति पंजिका बनाया जिस पर नियमित हस्ताक्षर करते हुए जुलाई – 2012 से मार्च 2014 तक के भुगतान की मांग करने लगे।
निदेशक ने ” नो वर्क नो पे ” के आधार पर किया खारिज
न्यायालय के आदेश के बाद शिक्षा निदेशक माध्यमिक डाॅ. महेन्द्र देव ने तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक उदय नरायण मिश्र से इन सभी शिक्षकों के नियमित उपस्थिति का सत्यापन करने का आदेश दिया जिसके अनुपालन मे तत्कालीन डीआईओएस ने शिक्षा निदेशक को अपनी रिपोर्ट भेजी। शिक्षा निदेशक ने अपने आदेश मे स्पष्ट लिखा है कि जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा उपलब्ध कराये गये आख्या /अभिलेखों के अनुसार संस्था के उपस्थिति पंजिका मे जुलाई -2012 से मार्च 2014 तक इन शिक्षको का हस्ताक्षर अंकित नही पाया गया जिसके कारण नियमित उपस्थिति की पुष्टि नही हो रही है इस लिए शिक्षको के प्रमाणित उपस्थिति न होने के कारण ” नो वर्क नो पे ” काम नही तो वेतन नही के सिद्धांत पर अवशेष भुगतान किया जाना नियम संगत नही है।
प्रबंधक-प्रधानाचार्य को मिलाकर किया तथ्यगोपन
सूत्रो की माने तो शिक्षा निदेशक द्वारा इन शिक्षको के नो वर्क नो पे के आधार पर भुगतान नही किये जाने के आदेश के बाद इन शिक्षको ने विद्यालय के उसी प्रबंधक और प्रधानाचार्य को मोटी कमीशन देकर नियमित उपस्थिति का रिपोर्ट अपने पक्ष मे लगवा लिया जो पहले इन शिक्षको के नियमित उपस्थिति के विरुद्ध अपनी आख्या तत्कालीन डीआईओएस उदय नरायण मिश्र को दिये थे। सूत्रो का दावा है कि इन शिक्षको का आज भी मूल उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर नही है।हालाकि इन शिक्षको का कहना है कि विद्यालय के मूल उपस्थिति पंजिका पर उनका हस्ताक्षर है। ऐसे में निष्पक्ष जांच हो जाये तो इन शिक्षको की नियमित उपस्थिति की पोल खुल जायेगी।
इसी विद्यालय के एक शिक्षक की है फर्जी डिग्री
कहना ना होगा कि बीते दिनो’विलेज फास्ट टाइम्स’ने बीएड की फर्जी डिग्री पर नौकरी कर रहे शिक्षक की सेवा समाप्ति के बाद तथ्य गोपन नौकरी कर रहे शिक्षक का मामला उठाया था, वह शिक्षक भी इसी विद्यालय के है। डीआईओएस ने खबर को सज्ञान में लेकर शिक्षक को दो बार साक्ष्य के साथ अपना पक्ष रखने का नोटिस भेजा था। किन्तु पहली बार शिक्षक द्वारा डीआईओएस के समक्ष संतुष्टपूर्ण पक्ष नही रखा जा सका। दुसरी बार पक्ष रखने का मौका नही मिल पाया जिसके वजह तीसरी बार पुनः डीआईओएस ने शिक्षक को साक्ष्य के साथ अपना रखने के लिए नोटिस भेजा है। यहा बताना जरूरी है कि शिक्षक का बीएड का डिग्री उस विश्व विद्यालय का जो फर्जी घोषित है, इस विश्व विद्यालय की न तो यूजीसी मे रजिस्ट्रेशन है और न ही शासन से मान्यता प्राप्त है। यूजीसी व शासन ने उस विश्व विद्यालय को फर्जी घोषित कर दिया है।
नोट-अगले अंक में पढे मूल उपस्थिति पंजिका पर बिना हस्ताक्षर किये तथ्य गोपन कर लाखो लाख रुपये एरियर प्राप्त करने वाले शिक्षकों व विद्यालय का नाम, साथ ही साथ जांच मे फर्जी पाये गये डिग्री पर सेवा समाप्ति के बाद तथ्यो को छुपाकर नौकरी करने वाले शिक्षक का होगा सुलासा।