
विलेज फास्ट टाइम्स – कुशीनगर
भ्रष्टाचार अन्वेषण एवं मानवाधिकार परिषद कूंदा मैदान में—निष्पक्ष जांच की मांग, 30 साल की सेवा पर सवालों की आंधी
कुशीनगर।
जिले के शिक्षा महकमे में कथित फर्जी नियुक्ति और विवादित पदोन्नतियों को लेकर बड़ा हंगामा खड़ा हो गया है।
भ्रष्टाचार अन्वेषण एवं मानवाधिकार परिषद ने अपर मुख्य सचिव, बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन पार्थ सारथी सेन शर्मा को एक विस्तृत और गंभीर शिकायत भेजकर डीआईओएस कार्यालय कुशीनगर में कार्यरत सुभाष प्रसाद यादव की सेवा यात्रा की संपूर्ण जांच की मांग की है।
संगठन का दावा है कि सुभाष प्रसाद यादव ने अनौपचारिक शिक्षा परियोजना (1989) में परिचारक से शुरू हुई नियुक्ति को कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर पहले बेसिक विभाग और फिर डीआईओएस कार्यालय तक पहुँचाया।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि सुभाष बिना स्वीकृत पद के ‘कुण्डली जमाए बैठे हैं’ और वर्षों से नियम विरुद्ध पदोन्नतियों का लाभ उठा रहे हैं।
1989 की नियुक्ति से 2025 तक—कई मोड़, कई सवाल!

शिकायत में कहा गया है कि
6 अक्टूबर 1989 को कसया विकास खंड (तत्कालीन देवरिया) में अनौपचारिक शिक्षा परियोजना में परिचारक के रूप में सुभाष प्रसाद की नियुक्ति हुई।
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि परियोजना में कार्यरत एक रिश्तेदार अधिकारी की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुभाष 16 अप्रैल 2001 तक वहीं कार्यरत रहे—कुल 11 वर्ष 6 माह 9 दिन।
लेकिन वर्ष 1999 में जब
अनौपचारिक शिक्षा परियोजना समाप्त कर दी गई,
तो सरकार ने
अनुदेशकों को तो सर्व शिक्षा अभियान में समाहित किया,
लेकिन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को हटा दिया।
अनुदेशक महेश कुमार, रामनरेश भारती और सूर्यप्रकाश का कहना है—
“परियोजना बंद हुई तो हम सबको निकाला गया, फिर सुभाष जी कैसे बेसिक विभाग में समाहित हो गए? किस आदेश से?”
सबसे बड़ा प्रश्न—परियोजना समाप्त हुई, पद समाप्त हुआ… फिर विभाग ने कैसे कर लिया समायोजन?
परिषद द्वारा अपर मुख्य सचिव को दिए गए पत्र में कहा गया है कि:
परियोजना खत्म होने के बाद सुभाष को किसी भी विभाग में समायोजित नहीं किया जा सकता था,
फिर भी 16 अप्रैल 2001 को वे बेसिक शिक्षा कार्यालय में परिचारक के रूप में प्रकट हो गए!
शिकायत के अनुसार, इसके कोई शासनादेश, कोई स्थानांतरण पत्र, कोई समायोजन आदेश उपलब्ध नहीं है।
परिषद का आरोप है:
“यदि कोई वैध आदेश नहीं है, तो यह गंभीर प्रशासनिक चूक या कूटरचना का मामला हो सकता है—इसकी निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है।”
डीआईओएस कार्यालय में वरिष्ठ लिपिक—“पदोन्नति पर पदोन्नति कैसे?”
शिकायत में यह भी दावा किया गया है कि:
सुभाष प्रसाद पहले कनिष्ठ लिपिक,
फिर वरिष्ठ लिपिक बने,
जबकि विभाग में ऐसा कोई वैध पद ही नहीं दिखता, जिस पर उनकी नियुक्ति आधारित हो।
परिषद ने लिखा है—
“बिना मूल नियुक्ति वैध हुए, पदोन्नति का आधार कैसे बना? यह पूरा मामला विभागीय फाइलों में गंभीर अनियमितता की ओर संकेत करता है।”
तीन दशक से एक ही जिले में सेवा—कर्मचारियों में चर्चा तेज
शिकायत में यह भी उल्लेख है कि सुभाष यादव पिछले लगभग 30 वर्षों से कुशीनगर में ही बीएसए, डायट और डीआईओएस कार्यालयों में लगातार सेवा देते आ रहे हैं।
कई कर्मचारियों ने अनौपचारिक रूप से कहा—
“इतने लंबे समय तक बिना तबादले के एक ही जिले में सेवा… यह अपने आप में आश्चर्य है।”
शिकायत में इस बिंदु पर विशेष रूप से ध्यान दिलाया गया है कि ऐसी निरंतरता सामान्य नियमों से मेल नहीं खाती।
परिषद की मांग—पूरी सेवा पुस्तिका की फोरेंसिक जांच
भ्रष्टाचार अन्वेषण एवं मानवाधिकार परिषद ने शासन से मांग की है कि—
सुभाष प्रसाद की 1989 से अब तक की सर्विस बुक की जांच की जाए।
नियुक्ति, समायोजन और पदोन्नति से जुड़े सभी दस्तावेजों की सत्यता की फोरेंसिक जांच कराई जाए।
यदि आरोप सिद्ध हों तो विभागीय एवं कानूनी कार्रवाई हो।
पूरे प्रकरण को उच्च स्तरीय समिति से जांच कराया जाए।
जिला शिक्षा महकमे में हलचल—शासन की नजरें अब कुशीनगर पर
मामले के शासन तक पहुंचते ही कुशीनगर के शिक्षा विभाग में तेज हलचल है।
कर्मचारियों की चर्चाओं से लेकर सोशल मीडिया तक, यह मुद्दा तेजी से फैल रहा है।
कई लोग इसे
“शिक्षा विभाग के इतिहास का सबसे बड़ा कथित नियुक्ति विवाद”
बता रहे हैं, जिसकी अब जिले से लेकर शासन तक निगाहें टिकी हैं।
