

सावन प्रकृति का सम्मोहक राग है, जिसमें कजरी की मधुर तान और भक्ति की गहराई एक अनूठा समन्वय रचती है। यह महीना हमें प्रकृति के सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है। कजरी के गीत, शिव की भक्ति और सावन के झूले हमारी परंपराओं की जीवंतता को दर्शाते हैं। हालांकि, आधुनिकता के इस दौर में सावन की यह रंगत शहरी जीवन में कहीं-कहीं फीकी पड़ती दिख रही है। झूलों की जगह मॉल्स, कजरी की जगह पॉप संगीत और सामूहिक उत्सवों की जगह व्यक्तिगत व्यस्तताओं ने ले ली है। यह एक चिंता का विषय है, क्योंकि सावन और कजरी जैसी परंपराएं हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।
हमें इन परंपराओं को सहेजने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेनी होगी।
सावन का महीना भारतीय संस्कृति में एक ऐसी सौगात है, जो प्रकृति के सौंदर्य, भक्ति की गहराई और लोक परंपराओं की मधुरता को एक साथ समेटे हुए है। यह वह समय है जब काले मेघ गर्जन के साथ बरसते हैं, धरती हरियाली का आलिंगन करती है, और हवा में एक ताजगी भरी ठंडक समा जाती है। सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि भावनाओं, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का संगम है, जिसमें कजरी जैसे लोकगीत सावन की फुहारों के साथ ताल मिलाते हुए जीवन को रागमय बनाते हैं।
सावन का आगमन प्रकृति का उत्सव है। आकाश में छाए काले मेघ, बारिश की रिमझिम और खेत-खलिहानों की हरियाली सावन को एक चित्रमय कैनवास बनाती है। नदियां उफान पर होती हैं, मोर की कूक वातावरण में संगीत घोलती है, और पेड़-पौधे बारिश की बूंदों से नहाकर नई स्फूर्ति पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सावन का यह सौंदर्य विशेष रूप से जीवंत हो उठता है। गांवों में बच्चे बारिश में कागज की नावें तैराते हैं, और किसान खेतों में नई फसल की उम्मीद के साथ मेहनत में जुट जाते हैं। सावन की यह प्राकृतिक छटा न केवल आंखों को सुकून देती है, बल्कि मन को भी एक अनोखी शांति प्रदान करती है।
सावन की इस रंगत में कजरी का स्थान अद्वितीय है। कजरी, जो मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की लोक संस्कृति का हिस्सा है, सावन की आत्मा को जीवंत करती है। इसका नाम ‘कजरा’ से प्रेरित है, जो मेघों की कालिमा और नारी के कजरारे नैनों का प्रतीक है। कजरी के गीत प्रेम, विरह, प्रकृति और सावन की बरसात को बयां करते हैं। ‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के, सावन की रुत आई’ जैसी पंक्तियां सावन की फुहारों के साथ मन की भावनाओं को एकाकार कर देती हैं।
कजरी के दो रूप विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं: लोक कजरी और शास्त्रीय कजरी। लोक कजरी ग्रामीण जीवन की सादगी को दर्शाती है, जहां महिलाएं झूलों पर बैठकर या चौपालों पर एकत्र होकर सावन की रिमझिम में गीत गाती हैं। वहीं, शास्त्रीय कजरी राग-रागिनियों पर आधारित होती है, जिसमें राग मालकौंस, मियां की मल्हार और अन्य वर्षा रागों का समावेश होता है। बनारस और मिर्जापुर जैसे क्षेत्रों में कजरी मेले आज भी आयोजित होते हैं, जहां यह लोककला अपनी पूरी शान के साथ जीवित है। वहीं
सावन का आध्यात्मिक महत्व भारतीय संस्कृति में गहराई से रचा-बसा है। यह भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। मान्यता है कि सावन में शिव की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। इस दौरान कांवड़ यात्राएं एक विशेष दृश्य प्रस्तुत करती हैं, जहां लाखों भक्त गंगा जल लेकर शिव मंदिरों की ओर कांवड़ में चलते हैं। शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़, बेलपत्र और दूध की चढ़ोतरी, और ‘हर-हर महादेव’ का उद्घोष सावन को भक्ति का पर्याय बनाता है। सावन का सोमवार विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, जब भक्ति, व्रत और पूजा के साथ शिव की आराधना करते हैं। यह आध्यात्मिकता सावन को केवल एक प्राकृतिक उत्सव से कहीं अधिक बनाती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक आयाम
सावन की परंपराएं सामूहिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सावन का स्वागत झूलों, मेहंदी और लोकगीतों के साथ होता है। गांवों में महिलाएं सखियों के साथ मिलकर कजरी गाती हैं, मेहंदी रचाती हैं, और झूलों पर हंसी-ठिठोली करती हैं। यह सामूहिकता न केवल सामाजिक बंधनों को मजबूत करती है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती है। सावन के मेले, विशेष रूप से बनारस, मथुरा और मिर्जापुर जैसे क्षेत्रों में, कजरी और अन्य लोक कलाओं को मंच प्रदान करते हैं।
हालांकि, आधुनिकता के इस दौर में सावन की यह रंगत शहरी जीवन में कहीं-कहीं फीकी पड़ती दिख रही है। झूलों की जगह मॉल्स, कजरी की जगह पॉप संगीत और सामूहिक उत्सवों की जगह व्यक्तिगत व्यस्तताओं ने ले ली है। यह एक चिंता का विषय है, क्योंकि सावन और कजरी जैसी परंपराएं हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। हमें इन परंपराओं को सहेजने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेनी होगी। सावन प्रकृति का सम्मोहक राग है, जिसमें कजरी की मधुर तान और भक्ति की गहराई एक अनूठा समन्वय रचती है। यह महीना हमें प्रकृति के सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है। कजरी के गीत, शिव की भक्ति और सावन के झूले हमारी परंपराओं की जीवंतता को दर्शाते हैं। सावन में हम बारिश की बूंदों के साथ कजरी की तान छेड़ें, शिव की आराधना में डूबें और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखें। सावन का यह उत्सव हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का एक अनमोल अवसर है, जिसे हमें पूरे उत्साह के साथ मनाना चाहिए।